प्लेटो का परिचय


प्लेटो को ऐतिहासिक दृष्टि से विश्‍व का प्रथम राजनीतिज्ञ, दार्शनिक तथा चिंतक माना जाता है। आपका जन्म 428 ई०पूर्व० एथेंस के कुलीन परिवार में हुआ था। वास्तविक नाम अरिस्तोक्लीज़ था किन्तु कंधे चौड़ा होने के कारण इनके गुरु सुकरात ने प्लेटो नाम दिया।


अपने गुरु से प्लेटो बहुत प्रभावित था। गुरु की मृत्यु बाद के पश्चात 388 ई० पूर्व० में प्लेटो ने एथेंस में "अकादमी" नामक शिक्षण संस्था की स्थापना की। प्लेटो को दार्शनिक का राजा और राजाओ का दार्शनिक बनाने वाला कहा जाता है। 347 ई० पूर्व० प्लेटो की मृत्यु हो गयी। प्लेटो ने अनेक ग्रंथो की रचना की। आपके मुख्य ग्रन्थ रिपब्लिक, स्टेट्समेन, लॉज, अपोलॉजी , क्रीटो, यूथिफ्रो फेडो आदि थे।

प्लेटो द्वारा राजनीति का विशद विवेचन रिपब्लिक, स्टेट्समेन और लॉज में किया गया हैं। प्लेटो ने अपने न्याय के सिद्धांत को साकार रूप देने के लिए आदर्श राज्य की संकल्पना प्रस्तुत की। इसकी व्याख्या उसने प्रसिद्ध ग्रन्थ रिपब्लिक  ( राज्य व्यवस्था) के अंतर्गत की।

प्लेटो का मानना था की समाज की बागडोर दार्शनिको के हाथ में दे दी जाये या फिर शासक स्वयं दर्शनशास्त्र की शिक्षा प्राप्त करके दार्शनिक बन जाये।

प्लेटो का चिन्तन पर सुकरात की तर्कविद्या की गहरी छाप थी। रिपब्लिक की रचना प्लेटो ने संवाद शैली में की थी। इन संवादो का प्रमुख पात्र स्वयं सुकरात हैं जो तरह - तरह के प्रश्न उठाता और अपनी शिष्यों को उन पर भिन दृष्टिकोणों का खंडन करके अपना समाधान प्रस्तुत करता है।

प्लेटो ने अपनी अध्ययन पद्धति में निगमन पद्धति, सौदेश्यात्मक पद्धति का प्रयोग किया। प्लेटो एक कल्पना वादी दार्शनिक भी रहा। प्लेटो को रचनाओं का आधार संवाद शैली रहा हैं।


प्लेटो का न्याय संबंधी विचार:

प्लेटो की पुस्तक रिपब्लिक (राज्य व्यवस्था) का वैकल्पिक शीर्षक न्याय मीमांसा (कंसर्निंग जस्टिस) हैं। प्लेटो ने न्याय का इतना विशद विवेचन किया की रिपब्लिक पुस्तक में ज्ञान की अनेक शाखाओं का समावेश हो गया हैं। प्लेटो ने तत्कालनिक समय में प्रचलित न्याय के तीन सिद्धांतो का खंडन किया।



  1. परंपारिक सिंद्धांत (सिफेलस)
  2. उग्रवादी सिंद्धांत (थ्रेसिमेक्स )
  3. व्यवहारवादी सिंद्धांत (ग्लुकोन)

प्लेटो न्याय को मनुष्य की आत्मा का एक अनिवार्य गुण मानता हैं तथा राज्य व् मनुष्ये में समानता दिखाने के लिए यह प्रतिपादित करता हैं की राज्य व्यक्ति का वृहत रूप हैं। अतः राज्य के गुण और व्यक्ति के गुण समान हैं।

व्यक्ति के तीन प्राकृतिक गुण प्लेटो ने बुद्धि , शौर्य और तृष्णा बताये उसने कहा जब ये तीन गुण उचित अनुपात में पाए जाते हैं तो व्यक्तिगत न्याय की स्थापना होती हैं। प्लेटो के अनुसार राज्य का निर्माण वृक्षो एवम चट्टानो से नहीं होता हैं वरन उसमे निवास करने वाले व्यक्तियों के चरित्र से होता हैं। मानव आत्मा के तीन गुणों या तत्वों से ही राज्य के तीन गुणों या तत्वों से ही राज्यो के तीनो वर्गो का निमार्ण होता है। विवेक का प्रतिनिधित्व करने वाले शासक वर्ग , शौर्य का प्रतिनिधित्व करने वाले सैनिक वर्ग तथा तृष्णा की प्रधानता वाले उत्पादक वर्ग का निमार्ण करते हैं। प्लेटो का मानना था की जब तीनो वर्ग अपने प्राकृतिक गुणों में से प्रमुख गुण के अनुसार अपने कर्त्तव्य का निर्वहन करते हैं तभी न्याय की स्थापना हो सकती हैं। ये तीनो वर्ग अपने गुणों की प्रधानता के अनुसार जीवनभर कार्य करते हैं और किसी दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करते तो तब न्याय आधारित राज्य निमार्ण होता हैं साथ ही साथ अपने गुण के अनुसार कार्य करते रहने से व्यक्ति के कार्य में दक्षता भी आ जाती हैं प्लेटो के न्याय पूर्ण राज्य की अवधारणा उसके कार्यविशेषीकरण और एकीकरण पर आधारित है। कार्य विभाजन का विचार भी न्याय को जन्म देता हैं जिससे आदर्श राज्य का संचालन होता है।


प्लेटो के न्याय सिद्धांत के मुख्य बिंदु :

  1. त्रिगुण आधारित व्यक्ति अवं राज्य
  2. कार्यविशेषीकरण का सिद्धांत
  3. नैतिक सिद्धांत
  4. व्यक्तिवादी विरोधी
  5. आंगिक एकता का निर्माण

प्लेटो के न्याय सिद्धांत की कमियां

  1. न्याय सिद्धांत वैधानिकता से दूर हैं
  2. व्यक्ति का पूर्ण विकास का अभाव
  3. लोकतंत्र विरोधी
  4. अमनोवैज्ञानिक अवं अव्यावहारिक
  5. दार्शनिक शासको के लिए निरंकुशता का मार्ग प्रशस्त करने वाला विचार हैं


निष्कर्ष : कमिया होने के बाद भी प्लेटो का न्याय सिद्धांत नैतिकता की स्थापना करने वाला हैं जो शासको व् नागरिको को नैतिकता के अनुरूप अपना कर्त्तव्य पालन करने के लिए प्रेरित करता है। देखा जाये तो वर्तमान में इस नैतिकता की बहुत आवश्यकता हैं।


प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था

शिक्षा प्लेटो के आदर्श राज्य का मूल आधार है। प्लेटो के अनुसार शिक्षा सामाजिक सदाचरण का मार्ग है। यह सामाजिक सफलता की कुंजी ही नहीं वरन सत्य की खोज करने का मार्ग भी है। शिक्षा एक सामाजिक व्यवस्था हैं जो व्यक्ति को समाज निमार्ण कार्य हेतु प्रशिक्षित करती है।

प्लेटो के अनुसार "शिक्षा मानसिक व्याधियों से मुक्त होने का मानसिक उपचार है।" प्लेटो ने अपनी शिक्षा व्यवस्था का निमार्ण करने में अपने समय में प्रचलित दो शिक्षा व्यवस्थाओ - एथेंस और स्पार्टा से प्रेरणा ली तथा इन दोनों का समन्वित रूप अपनी शिक्षा व्यवस्था में प्रस्तुत किया।


एथेंस की शिक्षा व्यवस्था : 

एथेंस की शिक्षा व्यवस्था व्यक्तिगत आधार पर तथा राज्य के नियंत्रण से पूर्ण मुक्त शिक्षा व्यवस्था थी। यह
शिक्षा व्यक्ति की आयु तक चलती थी। इसके अंतर्गत 14 वर्ष तक की आयु तक बालको को साहित्य, व्यायाम
और संगीत की शिक्षा दी जाती थी। 14 से 18 वर्ष तक राजनितिक जीवन का प्रशिक्षण दिया जाता है। 18
से 20 तक सैनिक प्रशिक्षण दिया जाता था। राज्य का नियंत्रण न होने के कारण शिक्षा बहुत महंगी और
धन्नी व्यक्तियों के लिए ही थी।


स्पार्टा की व्यवस्था: 

स्पार्टा में शिक्षा पर राज्य का नियंत्रण था। राज्य द्वारा शिक्षा व्यवस्था का संचालन किया जाता था, स्त्री तथा पुरुष दोनों के लिए समान शिक्षा व्यवस्था लागु थी। 7 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर बालक को माता पिता के अधिकार से राज्य के नियंतरण में ले लिया था। व्यायाम तथा संगीत को महत्व दिया जाता था। ज्ञान तथा विवेक को कोई महत्व नहीं , फलत: स्पार्टा वासी मजबूत सैनिक तो बनते थे लेकिन विवेक की दृष्टि से कमजोर थे।


प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था :

 एथेंस एवम स्पार्टा की शिक्षा में समन्वय के आधार पर प्लेटो ने शिक्षा व्यवस्था का प्रतिपादन किया। प्लेटो ने शिक्षा व्यवस्था को दो चरणों में विभक्त किया। प्राथमिक शिक्षा दूसरा उच्च शिक्षा व्यवस्था। प्लेटो समाज के सभी वर्गों की शिक्षा व्यवस्था नहीं करता उसकी शिक्षा सिर्फ , संरक्षक वर्ग केलिए , उत्पादक वर्ग को वह शिक्षा से वांछित रखता हैं।

संरक्षक वर्ग को भी दो भागो में विभक्त करता हैं एक शासक वर्ग और दूसरा वर्ग सैनिक वर्ग।

शासक वर्ग - शासक वर्ग की शिक्षा 50 वर्ष की आयु तक जारी रहती हैं। 

सैनिक वर्ग - सैनिक वर्ग की शिक्षा 30 वर्ष तक की आयु तक जारी रहती हैं।

प्लेटो स्त्री तथा पुरुष दोनों के लिए शिक्षा का समर्थक था।

प्लेटो की प्रम्भारिक शिक्षा  6 वर्ष से 20 वर्ष की आयु का शिक्षा एवम संरक्षक वर्ग के सभी बच्चो के लिए अनिवार्य हैं। प्रारंभिक शिक्षा का उद्देश्य भावनाओ तथा संवेगो को संतुलित और नियंत्रित करना विधार्थी का चरित्र निमार्ण करना ताकि वह दक्ष और अनुशासित सैनिक के रूप में अपना विकास कर सके। शिक्षा के प्रम्भारिक काल प्लेटो व्यायाम तथा संगीत की शिक्षा पर बल देता हैं।

प्लेटो व्यायाम शरीर को स्वरूप, बलिष्ट और अनुशासित करने के लिए संगीत आत्मा को नैतिक दृष्टि से समृद्ध तथा अनुशासित करने की दृष्टि से पाठ्यक्रम में शामिल करता हैं। 6 से 18 वर्ष तथा संगीत तथा व्यायाम 18 से 20 तक गद्य प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य , तन लिए व्यायाम तथा मन (आत्मा) के लिए संगीत "प्लेटो प्राथमिक शिक्षा के माध्यम से" स्वरुप शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निमार्ण करना चाहता हैं और यही शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य होता हैं।

प्लेटो बालको के सर्वागीण विकास पर बल देता हैं क्योकि इस समय की शिक्षा के समाप्त होने पर दार्शनिक शासक बनने की क्षमता रखने वाले विद्यार्थी के चयन का प्रश्न उपस्थित होता हैं। प्लेटो दार्शनिक शासक बनने के लिए क्षमता रखने वाले विद्यार्थी के चयन पर तीन बातो पर विशेष ध्यान रखता हैं - वे कठोर परिश्रमी हो , संकटों को धैर्यपूवर्क सामना करने की क्षमता रखते हो , सफल प्रतियोगी हो।

उच्च शिक्षा : प्लेटो ने प्रारंभिक शिक्षा को सफलतापूवर्क प्राप्त करने वाले विद्यार्थी के लिए उच्च शिक्षा का प्रावधान किया हैं। इसका उद्देश्य शासक एवं सैनिक वर्ग को प्रशिक्षित करना हैं। प्रारम्भ में शिक्षा 20 से 30 वर्ष तक चलती हैं। इसके पाठ्यक्रम में गणित , विज्ञान तथा तर्कशास्त्र एवं ज्योतिष आदि विषय थे । प्लेटो गणित के ज्ञान और वह भी रेखागणित के ज्ञान पर अधिक जोर देता हैं क्योंकि इसका ज्ञान शांति और युद्धकाल दोनों में शासकों के लिए लाभदायक सिद्ध होता हैं।

प्लेटो ने अपनी "अकादमी " (विद्यालय) के प्रवेश द्वार पर यह लिखा रखा था की "ज्यामिति या रेखागणित से अपरिचित किसी भी व्यक्ति का यहाँ प्रवेश वर्जित हैं। 30 वर्ष की आयु तक चलने वाले इस पाठ्यक्रम की समाप्ति पर परीक्षा द्वारा उन विद्यार्थी का चयन किया जायेगा जिन्हे अगले 5 सालो तक द्वन्द तथा दर्शन (डायलेक्टिक्स एंड फिलॉसफी) की शिक्षा दी जाएगी क्योकि यही लोग आगे जाकर वास्तविक शासक बनेंगे।असफल रहने वाले व्यक्ति सैनिक आदि बनेंगे। 5 वर्ष के गहन अध्ययन के पश्चात भावी शासको को 15 वर्ष तक शासन के विभिन्न पदों पर कार्य करने की व्यावहारिक शिक्षा दी जाएगी। इस तरह 50 वर्ष की आयु तक सम्पूर्ण उच्च शिक्षा का क्रम चलेगा।

सफल होने वाले विधार्थी ही प्लेटो के विचार से दार्शनिक शासक होंगे जो वास्तविक ज्ञान से परिचित होंगे और उसके अनुसार शासन संचालन करने से समर्थ होंगे।

प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था के मुख्या बिंदु: 

  • अनिवार्य तथा राज्य नियंत्रित शिक्षा
  • स्त्री पुरुष को समान शिक्षा
  • आदर्श राज्य की स्थापना के लिए शिक्षा सकारात्मक साधन
  • लगातार चलने वाला क्रम

कमियां :

  • अलोकतांत्रिक
  • उद्देश्य की दृष्टि से अस्पष्ट
  • सैद्धांतिकता की अधिकता
  • कला और साहित्य की उपेक्षा

महत्व:

प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था के शासको के प्रशिक्ष्रण पर बल देती है जो जरुरी है। प्रशिक्ष्रण प्राप्त करने के बाद शासक शासन संचालन कार्य में निपूर्ण होकर अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन ईमानदारी से करेंगे।

Comments

Popular Posts