भारत का राष्ट्रपति

संसदात्मक व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका का निकट संबध है । इस व्यवस्था में कार्यपालिका दो प्रकार की होती है एक सवैंधानिक और वास्तविक । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 52 के अनुसार भारत का एक राष्ट्रपति होगा जो संघीय कार्यपालिका का प्रधान होगा। भारत का राष्ट्रपति इंग्लैंड की तरह देश पर राज्य करता है शासन नहीं। ब्रिटिश शासन में सम्राट की जो सवैधानिक प्रमुख स्थिति है वही स्थिति भारत में राष्ट्रपति की है। l
राष्ट्रपति पद के लिए योग्यताएँ
भारत का नागरिक होना चाहिए।
वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
वह लाभ के पद पर न हो।

निर्वाचक मंडल

भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन जिस निर्वाचक मंडल द्वारा होता है उसमें संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा राज्यो की विधान सभाओं के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होते हैं। मनोनीत सदस्य इसलिए भाग नहीं लेते । राष्ट्रपति के  निर्वाचन मंडल का उल्लेख अनु० 54 में है । अनु० 55 में निर्वाचन पद्वति का उल्लेख किया गया है। एकल सक्रमंणीय आनुपातिक गुप्त मतदान प्रणाली के द्वारा निश्चत कोटा प्राप्त करने वाला  उम्मीदवार राष्ट्रपति का चुनाव जीतता है क्योंकि एकल संक्रमणीय प्रणाली से जो उम्मीदवार निश्चत कोटा प्राप्त नहीं करता है उसके वोट हस्तान्तरित कर दिए जाते हैं। इस लिए इसे एकल संक्रमणीय विधि कहा जाता है। जीतने वाले को निश्चत कोटा प्राप्त करना होता है। वोट गुप्त होता है। राष्ट्रपति पद के लिए सारी योग्यतांए पूरी करने वाला व्यक्ति ही उम्मीदवार बनता है । 
राज्यसभा व लोकसभा के महासचिवो को बारी बारी से इस चुनाव का अधिकारी बनाया जाता है  जो मतों की गिनती के बाद अपना निर्णय घोषित करते हैं। उम्मीदवारो के नामांकन पत्र को स्वीकार तथा जांच करना इन्हीं का कार्य है। निर्वाचक मंडल के 5० सदस्य प्रस्तावक तथा 5० सदस्य अनुमोदक होते हैं। पंद्रह हजार जमानत राशि होती है जो कि वैध मत का 1/6 प्रतिशत प्राप्त नहीं करने पर जब्त होकर भारतीय रिजर्व बैंक में जमा हो जाती है।

नोट-
एक विधायक का मत मूल्य =  
उस राज्य की जनसंख्या ×1.        
 उस राज्य की विधानसभा×1000
            सदस्य संख्या

यह 1971 की जनसंख्या को आधार वर्ष माना है यह 2026 तक माना है।
किसी विधानसभा भंग होने की वजह से भी चुनाव को रोका नहीं जाता।
अनुच्छेद 71 कहता है कि राष्ट्रपति चुनाव का विवाद होने पर सुप्रीम कोर्ट में 5 न्यायधीशों की बेंच सुनवाई करती है। अनु०324 में वर्णित है कि निर्वाचन आयोग चुनाव कराता है।

राष्ट्रपति की शपथ, कार्यकाल , महाभियोग , कार्य एवं शक्तियां 

अनु० 6० में राष्ट्रपति की शपथ का उल्लेख है।राष्ट्रपति संविधान की रक्षा व लोगों के कल्याण की शपथ लेते हैं ।भारत के मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति को शपथ दिलाते है।
अनु०56 में राष्ट्रपति के कार्यकाल का विवरण है। राष्ट्रपति का कार्यकाल पाँच वर्ष होता है। निर्धारित कार्यकाल से पूर्व पद रिक्त होने पर 6 माह में चुनाव कराने होते हैं और ये नये चुनाव 5 वर्ष के लिये होता है। जब तक नया राष्ट्रपति कार्यभार नहीं संभालते तब तक पुराने राष्ट्रपति ही कार्य करते है ।राष्ट्रपति अपना इस्तीफा उपराष्ट्रपति को देता है और उपराष्ट्रपति इसकी सूचना लोकसभा अध्यक्ष को देता है।
महाभियोग शब्द केवल राष्ट्रपति के लिए प्रयोग किया गया है। अनु०56 और 61 दोनों में इसका उल्लेख है। राष्ट्रपति पर संविधान के उल्लंघन एवं अतिक्रमण का आरोप लगता है जबकि कदाचार एवं दुर्व्यवहार का आरोप नहीं लगता। राष्ट्रपति पर महाभियोग किसी भी सदन( राज्यसभा एवं लोकसभा) में लाया जा सकता है। अनु०61 में लिखा है कि चर्चा शुरू होने से चौदह दिन पूर्व सूचना राष्ट्रपति को अनिवार्य रूप से देनी होती है। राष्ट्रपति अपने किसी प्रतिनिधि को पक्ष रखने के लिए भेज सकते हैं। महाभियोग सदन की कुल सदस्य संख्या का 2/3 बहुमत से पारित एवं स्वीकृत किया जाता है। संसद के मनोनीत सदस्य महभियोग प्रक्रिया में भाग लेतें हैं। महाभियोग की प्रक्रिया को अर्द्धन्यायिक प्रक्रिया कहते हैं। महाभियोग जब तक पारित नहीं होता तब तक राष्ट्रपति को सभी नियमित राष्ट्रपति की शक्तियां एवं सुविधाएं प्राप्त होती है। राष्ट्रपति के सारे कार्य वैध माने जाते हैं।

कार्यपालिका संबंधी शक्तियां

संसदात्मक शासन व्यवस्था में समस्त वास्तविक शक्तियाँ मंत्रिमंडल में निहित हैं। अनु० 53 कहता है कि वह इनका प्रयोग अधिनस्थ (मंत्रिमंडल) के द्वारा करेंगें।
प्रधानमंत्री की नियुक्ति (बहुमत दल के नेता) राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राष्ट्रपति स्वविवेकी शक्ति प्राप्त है जिसके द्वारा बहुमत प्राप्त न होने के कारण किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए वह आमंंत्रित कर सकता है। प्रधानमंत्री की सलाह से राष्ट्रपति मंत्रियो को नियुक्त करते है और शपथ दिलातें हैं। अनु०78 के अन्तर्गत राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से देश की व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकता है। राष्ट्रपति विधि निर्माण के संबंध में भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। राष्ट्रपति किसी भी समय किसी भी समय किसी भी विषय पर मंत्रिपरिषद से चर्चा के लिए कह सकता है | राष्ट्रपति द्वारा महा न्यायवादी , 28 राज्यों के राज्यपाल एवं संघशासित प्रदेशों के उपराज्यपाल तथा प्रशासको की नियुक्ति करते हैं जो राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त पद पर रहते हैं।

व्यवस्थापिका संबंधी शक्तियां

अनु०79 के अनुसार राष्ट्रपति संसद का अंग है।राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ही कोई बिल विधेयक बनता है । राज्यसभा में 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं ये सदस्य साहित्य , कला , समाज सेवा , विज्ञान क्षेत्र के प्रसिद्ध होतें है।राष्ट्रपति संसद के अधिवेशन आहुत करतें हैं , सत्रावसान  करते हैं। लोकसभा को भंग करने का अधिकार भी इन्हें प्राप्त  है।राष्ट्रपति संसद के अधिवेशन को संबोधित करतें हैं तथा संदेश भेज सकते हैं। वर्ष के पहले सत्र , बजट सत्र एवं लोकसभा चुनाव के बाद प्रथम सत्र को राष्ट्रपति  सम्बोधित करते हैं।

न्यायिक , वित्तीय और कुटनीतिक शक्तियां

राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को नियुक्त कर उन्हें शपथ दिलाते हैं। उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थान्नांतरण भी राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है। अनु०72 के अन्तर्गत राष्ट्रपति को क्षमादान, दंड को कम करने , निलम्बित करने अथवा उसे परिवर्तित करने  की शक्ति प्राप्त है।
राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद ही कोई मनी बिल लोक सभा में रखा जाता है। संसद में बजट पेश कराना , भारत की आकस्मिक निधि में से धन निकालने की अनुमति देना , वित्त आयोग की नियुक्ति करना तथा उसकी रिपोर्ट संसद में पेश कराना राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियों में आता है।
अनु०53 के अनुसार राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का कमाण्डर होते हैं। यदि भारत की ओर से युद्ध की घोषणा होनी है तो राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। राजदूतों की नियुक्ति भी राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियाँ

संविधान में तीन तरह की आपतकालीन शक्तियों का वर्णन है।
अनु०352 के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा मंत्रिमंडल की लिखित सलाह पर राष्ट्रीय आपातकाल लगाया जा सकता है ।यदि बाह्य आक्रमण अथवा युद्ध में शामिल हो जाने पर अथवा सशस्त्र विद्रोह इन तीनों दशाओं के वास्तविक रूप में होने पर अथवा संभावना होने पर आपातकाल लागु किया जा सकता है। अब तक  तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल लग चुका है। सबसे पहली बार सन् 1962 में चीन द्वारा भारत पर आक्रमण के समय , दुसरी बार सन् 1971 में पाकिस्तान आक्रमण तथा तीसरी बार सन् 1975 में आन्तरिक अंसतोष के आधार पर   राष्ट्रीय आपातकाल   लगाया गया। अनु०352 राष्ट्रीय आपातकाल बिना संसद की अनुमति 1 माह तक जारी रह सकता है। एक महीने के भीतर संसद की अनुमति लेना आवश्यक है। संसद की अनुमति मिलने पर छः माह तक बढ़ाया जा सकता। छः महीने बार बार अनुमति लेकर इसे अनन्त काल तक बढ़ाया जा सकता है ।
अनु०356 के अन्तर्गत किसी राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता अथवा राज्य में भारतीय संविधान के प्रावधानों के तहत शासन न होने के कारण राष्ट्रपति शासन लागु होता है। अनु०356 के अन्तर्गत संसद की अनुमति के बिना दो माह तक राष्ट्रपति शासन लगा रह सकता है। यदि अनुमति नहीं मिलती तो राष्ट्रपति शासन समाप्त हो जाता है । संसद के दोनों सदनो के सामान्य बहुमत से अनुमति मिलने पर छह माह तक एवं एक वर्ष तक राष्ट्रपति शासन राज्य में  लागु रह सकता है।अधिकतम तीन वर्ष तक रखने के लिए हर छह महीने में संसद में संसद से अनुमति लेनी होती है।

वित्तीय आपातकाल अनु० 360 यदि देश की साख को किसी भी प्रकार का खतरा होने पर अथवा अर्थव्यवस्था पर संकट अथवा व्यापारिक असंतुलन हो तब राष्ट्रपति शासन के लिए दो माह के अंदर संसद से अनुमति लेनी होगी। अनु०360 के अन्तर्गत न्यायाधीशो के वेतन की कटौती , प्रशासनिक अधिकारियों के वेतन में कटौती , राज्य बजट केंद्र सरकार की अनुमति से लागु होता है। अभी तक एक बार भी देश में वित्तीय आपातकाल नहीं लगा है।

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