ब्रिटिश संसद

ब्रिटिश संसद सबसे प्राचीन कानून बनाने वाली संस्था है। इसके दो भाग थे और वर्तमान में भी हैं ।
लार्ड सभा एवं कॉमन सभा नार्मन काल में जो महापरिषद थी वही बाद में धीरे- धीरे
ब्रिटिश संसद बनी । ब्रिटिश संसद सम्राट , लार्ड सभा और कॉमन सभा इन तीन अंगो से मिलकर बनी है।
वैधानिक दृष्टि से ब्रिटिश संसद संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न है। संसद कोई भी कानून बना सकती है अथवा रद्द कर सकती है। कानूनी प्रभुत्व शक्ति राजा को संसद से प्राप्त है परन्तु वास्तव में वह शक्ति संसद के पास रहती है।
लोकसभा की सदस्य संख्या निश्चित नहीं है और यह उत्तर उत्तर बढ़ती ही जा रही है क्योंकि  इसमें सम्राट प्रधानमंत्री की सिफारिश पर जितने नवीन सदस्य आवश्यक समझे नियुक्त कर सकता है



लार्ड सभा- 

लार्ड सभा लोकतंत्रात्मक प्रणाली की कुलीन तंत्रीय संस्थ है क्योंकि इसके सदस्य वंशानुगत आधार पर चुनकर आते हैं। लाार्ड सभा की सदस्य लोकसभा की सदस्य संख्या निश्चित नहीं है और यह उत्तर उत्तर बढ़ती ही जा रही है क्योंकि  इसमें सम्राट प्रधानमंत्री की सिफारिश पर जितने नवीन सदस्य आवश्यक समझे नियुक्त कर सकता है अवकाश प्राप्त प्रधानमंत्री लोक सदन के अवकाश प्राप्त अध्यक्ष अवकाश प्राप्त सेनापति और वायसराय उच्च कोटि के न्याय वेत्ताओं  साहित्य विज्ञान तथा कला में प्रसिद्धि प्राप्त व्यक्तियों को ही प्रधानमंत्री की सिफारिश पर सम्राट द्वारा सदस्यता प्रदान की जाती है । 
लार्ड सभा में कानून के लार्ड, आजीवन पियर, राजवंश के राजकुमार ,वंश परंपरागत पियर ,स्कॉटलैंड के प्रतिनिधि पियर और आध्यात्मिक लार्ड शामिल रहते हैं । वर्तमान सदस्य संख्या 1084 है। लार्ड सभा के सदस्य नियुक्त किये जाते है इनका निर्वाचन नहीं होता । लार्ड सभा के अध्यक्ष को लार्ड चांसलर कहा जाता है जिसे प्रधानमंत्री नियुक्त करता है।
कॉमन सभा या लोकसदन- कामन सभा की सदस्य संख्या में समय- समय पर परिवर्तन होता रहता है। वर्तमान में सदस्य संख्या 660 है । इसके समस्त सदस्य व्यस्क मताधिकार और प्रत्यक्ष निर्वाचन के आधार पर चुने जाते हैं। सदस्य की योग्यता में वह ब्रिटेन का नागरिक हो, 21 वर्ष आयु प्राप्त कर चुका हो, मतदाता सूची में उसका नाम सम्मलित हो तथा वह देश के प्रति निष्ठा की शपथ लेने के लिए तैयार रहे। ब्रिटेन में भारत के ही समान कोई भी उम्मीदवार किसी भी चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ सकता है। कॉमन सभा के सदस्य किसी निर्वाचन क्षेत्र विशेष के ही नहीं, वरन् संपूर्ण राष्ट्र के प्रतिनिधि होते हैं। कॉमन सभा के सदस्यों का चुनाव सारा बहुमत की प्रणाली के आधार पर होता है जिसके अंतर्गत प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र में वही उम्मीदवार चुना जाता है जिसे सर्वाधिक मत प्राप्त हो । कॉमन सभा का कार्यकाल 5 वर्ष  है किन्तु आवश्यकता अनुसार कार्यकाल में वृद्धि की जा सकती है । प्रधानमंत्री की सिफारिश पर सम्राट के द्वारा लोक सदन को 5 वर्ष की अवधि व्यतीत होने के पूर्व भी विगठित किया जा सकता है ।

संसद की प्रभु सत्ता

संसद की प्रभुसत्ता ब्रिटिश संविधान की सर्वप्रमुख विशेषता है।
जे०ए०आर० मेरियट के अनुसार" ब्रिटिश संसद धार्मिक तथा लौकिक मामलों में कानून निर्माण की सर्वोच्च सत्ता है।" 
सर एडवर्ड कोक के अनुसार " संसद की शक्ति तथा अधिकार क्षेत्र इतना श्रेष्ट और पूर्ण है कि इसे किसी सीमा के अन्तर्गत बाँधा नहीं जा सकता । "
विधि निर्माण की एकमात्र संस्था
ब्रिटेन में एकात्मक शासन होने के कारण कानून निर्माण की सारी शक्ति संसद के पास है।

कानून में परिवर्तन की क्षमता
ब्रिटेन में सवैंधानिक एवं साधारण विधि के बीच कोई अंतर नहीं है। संविधान में लचीलापन होने के कारण संसद संविधान में परिवर्तन कर सकती है और किसी भी कानून को रद्द भी कर सकती है ।

न्यायिक पुनार्विलोकन का अभाव
ब्रिटिश न्यायालय संसद द्वारा पास किए गए किसी भी कानून को वैध अथवा अवैध घोषित नहीं कर सकता और न ही इसे लागू करने से इंकार कर सकता है। ब्रिटिश संसद की संप्रभुता के दो पक्ष है सकारात्मक और नकारात्मक । ब्रिटिश संसद की संप्रभुता पर कुछ सीमायें भी है ।

संसदीय संप्रभुता की सीमाएं

नैतिक बंधन- संसद की प्रभुसत्ता पर अनेक प्रतिबंध है जिनका संसद अपनी इच्छा से पालन करती है।
परम्पराएं- यदि संसद किसी परम्परा की उपयोगिता परिस्थितियों के अनुसार समाप्त हो रही है तो कानून द्वारा उसमें परिवर्तन किया जा सकता है । यदि प्रमुख परम्पराओं का उल्लंघन होता है तो ब्रिटिश संसद का महत्व ही समाप्त हो जाएगा और जनता भी संसद के विरुद्ध हो सकती है।

आन्तरिक एवं वाह्य सीमाएं- आन्तरिक एवं परिसीमा यह है कि संसद ऐसा कानून बनाने से हिचकिचायेगी जो जनमत के प्रत्यक्ष रूप से विरुद्ध हो । दूसरा वह उपनिवेशो के लिए ऐसा कोई भी कानून नहीं बनायेगी जिसका संसद को विरोध सहन करना पड़े ।

कानून का शासन- कानून के शासन का अर्थ सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान है। यदि ब्रिटिश संसद विधि के शासन का उल्लंघन करती है तो उसकी वही स्थिति होगी जो किसी देश में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन करने पर होती है।

वेस्टमिनिस्टर संविधि- ब्रिटिश संसद की प्रभुसत्ता1931 की वेस्टमिनिस्टर संविधि से सीमित होती है। वेस्ट मिनिस्टर परिनियम या संविधि में उल्लेख है कि 1931 के बाद से ब्रिटिश संसद अधिराज्यों के लिए कोई भी अधिनियम उस समय तक नहीं बनाएगी । जब तक कि किसी अधिराज्य की संसद द्वारा इसके लिए प्रार्थना न की जाए।
प्रदत्त व्यवस्थापन- ग्रेट ब्रिटेन में संसद के पास काफी कार्य होते हैं जिसके कारण वह प्रत्येक कानून के विस्तार में अपना पूर्ण समय नहीं दे पाती है। संसद केवल कानूनों का प्रारूप तैयार करके नियम व उपनियम बनाने का कार्य मंत्रियों को सौंप देती है । मंत्रियों की इसमें थोड़ा बहुत संशोधन करने का अधिकार भी दे दिया गया है।

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