प्लेटो के आदर्श राज्य पर विचार

प्लेटो के ग्रंथ ' रिपब्लिक' का मुख्य उद्देश्य एक ऐसे आदर्श राज्य निर्माण करना है जो सभी प्रकार के विकारों और भ्रष्टाचारों से मुक्त हो। उसका आदर्श राज्य' अच्छाई अथवा सदगुणों' का मूर्त रूप है । प्लेटो आदर्श राज्य के निर्माण कल्पना की उड़ान वहाँ तक भरता है जहाँ तक संभव है । इस दृष्टि से वह इस बात की चिंता नहीं करता है कि कल्पना के आधार पर वह जिन सिद्धान्तों तथा आदर्शों की स्थापना कर रहा है वे व्यावहारिक धरातल पर आधारित है भी या नहीं । उसके लिए आदर्श सर्वोपरि महत्व के हैं उनकी व्यावहारिकता नहीं।



प्लेटो के आदर्श राज्य के उद्देश्य

न्याय की स्थापना- प्लेटो के न्याय का स्वरूप आधुनिक न्याय के स्वरूप के अनुसार विधि सम्मत अथवा कानूनी नहीं। उसका न्याय नैतिकता अथवा सदगुणों का पर्याय है । न्याय से उसका तात्पर्य एक कार्य विभाजन और निर्वाह की एक ऐसी व्यवस्था से है जो व्यक्ति के मूल नैसर्गिक गुण पर आधारित है । ये नैसर्गिक गुण है ज्ञान, शौर्य और तृष्णा । प्लटो के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति में अन्य गुणों की तुलना में एक गुण प्रधान होता है । उसी के आधार पर व्यक्ति का कार्य निर्धारित होता है। ज्ञानवान शासन करने का, शौर्यवान सुरक्षा का और तृष्णावान उत्पादन का कार्य करते हैं और एक ऐसे समाज का निर्माण करते हैं जो आदर्श समाज होता  है ।
एकताबद्ध और समरस राज्य की स्थापना- प्लेटो एक ऐसे समाज की स्थापना करना चाहता है जो सावयवी या आंगिक एकता और समरसता पर आधरित हो । प्लेटो के अनुसार "राज्य व्यक्ति का वृहत् रूप है" और इसलिए शारीरिक एकता के समान ही वह राज्य की एकता को भी स्थापित करना चाहता है ताकि वे शरीर के अंगो के समान ही समरस होकर काम कर सके । वह इस तरह की स्वाभाविक एकता की स्थापना कर राज्य को समरसता का एक मूर्त रूप प्रदान करना चाहता है ताकि व्यक्ति और राज्य के कार्य में कहीं संघर्ष अथवा टकराव न हो।
प्लेटो के आदर्श राज्य की विशेषताओं के मुख्य बिन्दु
ज्ञान का शासन- प्लेटो के न्याय आधारित आदर्श राज्य की प्रमुख विशेषता ज्ञान की संप्रभुता के सुकराती सिद्धान्त के अनुसार प्रशासित है। प्लेटो के आदर्श राज्य में जो ज्ञानवान है, सदगुणी है उन्हें ही शासन करने का अधिकार प्राप्त है। प्लेटो के अनुसार" ज्ञान का शासन होवह औषधि है जिसका सेवन करके एक राज्य अपने आंतरिक और वाह्य रोगों से मुक्ति प्राप्त कर स्वास्थय लाभ कर सकता है।"
सावयवी या आंगिक एकता का साकार रूप की तरह प्लेटोका आदर्श राज्य कार्य करता है प्लेटो कहता है कि व्यक्तिवादी राज्य की तरह व्यक्ति और राज्य में किसी प्रकार का संघर्ष नहीं है । प्लेटो के अनुसार" राज्य वृक्षों या चट्टानो ने उत्पन्न नहीं होता है । वह उन व्यक्तियों के चरित्र या स्वभाव से उत्पन्न होता है जो उसमें निवास करतें हैं।"
प्लेटो का आदर्श राज्य एक नैतिक संगठन है किसी ऐतिहासिक विकास या प्रक्रिया का परिणाम नहीं है। वह मनुष्य के दिमाग की उपज है । वह सदगुणों का समुच्चय है । अतः उसमें रहकर मनुष्य अपनी आत्मा का विकास कर सकता है ।




प्लेटो का आदर्श राज्य कार्यविभाजन और विशेषीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है । प्लेटो सम्पूर्ण समाज के व्यक्तियों को उनके नैसर्गिक गुणों जैसे- ज्ञान, वीरता और तृष्णा के आधार पर तीन भागों में विभक्त कर देता है तथा इसी आधार पर एक कार्य निर्धारित करता है। ज्ञानवान व्यक्ति शासन करते हैं, शौर्यवान व्यक्ति सैनिकों का उत्तरदायित्व निभाते हैं तथा क्षुधावान व्यक्ति उत्पादन वर्ग का कार्य करते हैं तथा इस विशेषीकरण के आधार पर एक दूसरे के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं करते हुए आदर्श राज्य के रूप को बनाए रखते हैं। इन तीनों वर्गों के सहयोग पर आदर्श राज्य का रुप निर्भर करता है । वे एक - दूसरे के हितों या आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए उस न्याय को जन्म देते हैं जो प्लेटो के आदर्श राज्य का मूल आधार है ।
प्लेटो का आदर्श राज्य दार्शनिक शासक द्वारा प्रशासित है। जो आत्म -ज्ञान या दर्शन की भावना से प्रशिक्षित है , दार्शनिक शासक पूर्णतः सयंमी और निस्वार्थी है तथा जिसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य शासन का इस तरह से संचालन करना है जिससे अधिकारिक लोक कल्याण की प्राप्ति हो सके ।
प्लेटो का आदर्श राज्य और दार्शनिक शासक के निर्माण में राज्य नियंत्रित शिक्षा का महत्वपूर्ण एवं सकारात्मक  योगदान है। आदर्श राज्य को मूर्त रूप देने में यदि कोई कमी रह जाती है तो साम्यवादी व्यवस्था पूरक के रूप में कमी को दूर करने का एक प्रभावी उपाय है । शिक्षा व्यवस्था एक सकारात्मक उपाय है तो साम्यवादी व्यवस्था एक नकारात्मक या निषेधात्मक साधन है। प्लेटो ने निरीक्षण के द्वारा राज्य में उत्पन्न बुराइयों का एक प्रमुख कारण व्यक्तिगत संपत्ति और परिवारवाद अनुभव किया । प्लेटो को डर था कि आदर्श राज्य के संरक्षकों को यदि वैयक्तिक सम्पत्ति और वैयक्तिक परिवार रखने का अधिकार दिया तो उसका अंततः पतन निश्चित है । इसलिये साम्यवादी व्यवस्था का प्रतिपादन करके अपने आदर्श राज्य के पतन के इस प्रमुख कारण को समाप्त करने का प्रयास किया । प्लेटो स्त्रियों को भी पुरुषों द्वारा किए जाने वाले कार्यो के लिए समान अधिकार देता है तथा संरक्षक मंडल में उन्हें सम्मिलित करके आदर्श राज्य की स्थापना करना चाहता है। प्लेटो अपने आदर्श राज्य के स्वरूप को बनाए रखने के लिए कला एवं साहित्य पर कठोर राज्य का नियंत्रण रखता है। प्लेटो अपने आदर्श राज्य की कल्पना के लिए ऐसे तथ्य प्रस्तुत करता है जो अधिकांश रूप से अव्यावहारिक होते हुए भी आदर्श के रूप में महत्व रखती है। वेपर के अनुसार" उचित नेतृत्व, उचित सुरक्षा, उचित पोषण आदर्श राज्य के अपरिहार्य तत्व है। "
प्लेटो के आदर्श राज्य की आलोचना विभिन्न आलोचकों द्वारा की जाती है । आलोचको द्वारा आदर्श राज्य को स्वप्नलोकीय राज्य कहा गया तथा विभिन्न आधारो पर उसे अव्यावहारिक घोषित किया गया। आलोचक कहते है कि प्लेटो का आदर्श राज्य को विधि की अवहेलना करने वाला है । विधि या कानून की अवहेलना कर शासक की निरंकुशता का समर्थन किया गया है । प्लेटो ने व्यक्ति और राज्य के मध्य शरीर और अंगो का संबंध माना परन्तु इसे उसी रूप में लागु नहीं किया जा सकता । प्लेटो के आदर्श राज्य का स्वरूप लोकतंत्र विरोधी है क्योंकि यह अल्पसंख्यक प्रशासित है । उत्पादक वर्ग जो बहुसंख्यक है प्लेटो उनकी उन्नति की कोई व्यवस्था नहीं करता है। कार्य विभाजन और विशेषीकरण के सिद्धान्त के कारण प्लेटो के आदर्श राज्य में व्यक्ति न तो स्वतंत्र है और न किसी के बीच समानता है । अपने नैसर्गिक गुणों के अनुसार एक ही कार्य व्यक्ति बिना विरोध के जीवन पर्यन्त करता है । आदर्श राज्य में व्यक्ति को रुचि परिवर्तन या योग्यता परिवर्तन का कोई अधिकार नहीं है । आदर्श राज्य में प्लेटो पदाधिकारियों की नियुक्ति की पद्धति का विवरण, न ही विवादो से निपटारे का और न ही अपराधियों को दण्ड देने की व्यवस्था को बताता है । इन व्यवस्थाओं के अभाव में आदर्श राज्य व्यवस्था का संचालन कठिन ही नहीं लगभग असंभव सा है । प्लेटो का आदर्श राज्य अव्यावहारिक है ।
प्लेटो के आदर्श राज्य का मूल्यांकन बताता है कि दार्शनिक शासक निरकुंश होकर भी अत्याचारी नहीं हो सकता क्योंकि वह ज्ञान और सदगुण का मूर्त रूप है ।आत्म संयम और लोक कल्याण उसके जीवन का उद्देश्य है ।बार्कर के अनुसार "आदर्श राज्य का दार्शनिक शासक एक ऊपर से थोपा हुआ या जोड़ा तत्व नहीं वरन उस संपूर्ण पद्धति का तर्कसंगत परिणाम है जिसके अनुसार आदर्श राज्य का निर्माण किया जाना है ।  "
 प्लेटो भी कहता है कि इस बात की चिंता नहीं की जानी चाहिए कि आदर्श राज्य का अस्तित्व है या नहीं ।यह विचारों से निर्मित है और इसी रूप में वह मनुष्य के चिंतन कार्यों को प्रभावित करता रहेगा |

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