ब्रिटिश संविधान के अभिसमय अथवा वैधानिक परम्पराएं(Conventions of British constitution)


ब्रिटिश संविधान के अभिसमय अथवा वैधानिक परम्पराए जिन्हें जेएस मिल ने संविधान के अलिखित नियम कहा प्रो० डायसी ने संवैधानिक अधिनियम के नाम से पुकारा ।
एंसन ने संवैधानिक परंपराओं का नाम दिया ये परंपराएं ही ब्रिटिश संविधान के विभिन्न स्रोत हैं ।
डायसी के अनुसार "संविधान के अधिसमय वे रीति रिवाज या समझौते हैं जिनके अनुसार पूर्ण संपन्न विधानमंडल के विभिन्न अंगों को अपने विवेक आधारित अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए चाहे वह सम्राट के परम अधिकार हो या पार्लियामेंट के विशेषाधिकार |"
ऑग के अनुसार "  अभिसमय उन समझौतों , आदतों या  प्रथाओं  से मिलकर बनते हैं जो राजनीतिक नैतिकता के मात्र होने पर भी बड़ी से बड़ी सार्वजनिक  सत्ताओं के दिन प्रतिदिन के संबंधो और गतिविधियों के अधिकांश भाग का नियमन करते हैं ।"


अभिसमय के लक्षण

अभिसमय का स्रोत संसद की कानून निर्मात्री शक्ति न होकर प्रथाएं है । जब ये प्रथाएं धीरे - धीरे प्रयोग में आते आते अपनी उपयोगिता के आधार पर प्रशासन में स्थायित्व प्राप्त कर लेती है तभी उनका रुप अभिसमयों का होता है ।
इनका पालन लोकमत , पारस्परिक सहमति एवं उपयोगिता के कारण किया जाता है।
अभिसमयों को न्यायिक मान्यता प्राप्त न होने पर भी व्यवहार में कानून जैसी पवित्रता प्राप्त होती है ।



कानून और अभिसमय में अंतर

  • कानून लिखित होने के कारण सर्वविदित होते हैं जबकि अभिसमय का ज्ञान प्राप्त करने के लिए जागरूकता की आवश्यकता होती है ।
  • कानून किसी विशेष प्रक्रिया को अपनाकर कानून निर्माण करने वाली सत्ता की इच्छा के परिणाम होते है जबकि अभिसमय उदाहरण या व्यवहार के परिणाम होते हैं। जब एक विशेष प्रकार का व्यवहार अपनाया जाता है और व्यवहार उपयोगी सिद्ध होता है तो वही अभिसमय बन जाता है।
  • कानून में निश्चितता का भाव होता है उन्हें विशेष समय में लागू किया जाता है जबकि अभिसमय में ऐसा नहीं है।
  • कानून के पीछे राज्य की प्रभुत्व शक्ति का दबाब तथा न्यायिक संरक्षण प्राप्त होता है । कानून के उल्लघंन पर व्यक्ति को दण्ड मिलता है। जबकि अभिसमय का पालन व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर होता है और उल्लंघन पर कोई दंड का प्रावधान नहीं होता इसके पीछे मात्र नैतिक शक्ति कार्य करती है ।
  • अभिसमय केवल राजनीतिक नैतिकता के नियम मात्र कहा जा सकता है
  • कानून एवं अभिसमय एक दूसरे के पूरक ही हैं ।

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