मैकियावेली के राजनीतिक विचार

निकोलो मैकियावेली अपने युग का शिशु और आधुनिक राजनीतिक चिंतन का जनक था । इसका जन्म इटली के फ्लोरेंस नगर में 1469 में हुआ था । मैकियावेली के चिंतन पर उसके समय की परिस्थितियों का गहरा प्रभाव पड़ा । मैकियावेली का नगर फ्लोरेंस पुनर्जागरण आंदोलन का प्रमुख केंद्र था । अरस्तू के पश्चात मैकियावेली ने ऐतिहासिक अध्ययन पद्धति को अपनाया । मैकियावेली के द्वारा लिखित प्रथम ग्रंथ 'प्रिंस' में दैवीय और मानवीय इन दोनों तत्वों में स्पष्ट संघर्ष दिखायी देता है । मैकियावेली के विचार मध्ययुगीन परम्पराओं से भिन्न हैं। मैकियावेली ने ऐेतिहासिक , पर्यवेक्षणात्मक तथा बुद्धि प्रधान तथ्यों के आधार पर अपने राजनीतिक विचारों का प्रतिपादन किया। मैक्सी ने इसलिए ही उसे सबसे पहला आधुनिक राजनीतिक चिन्तक कहा । डनिंग ने प्रिंस पुस्तक को ऐसी प्रथम महान रचना बताया, जिसने मध्ययुगीन  चिंतन प्रणाली का परित्याग कर दिया।

मैकियावेली ने राजनीति में धर्मवाद और नैतिकवाद का अनुसरण करने के स्थान पर शुद्ध व्यवहारवाद का अनुसरण किया  और उसे नया रूप प्रदान किया। इसका चिंतन राज्य सुरक्षा एवं संचालन की कला से संबन्धित है। मैकियावेली ने दि प्रिंस, लिवी के इतिहास की दस पुस्तकों पर टीका, फ्लोरेंस का इतिहास तथा युद्ध की कला पुस्तकों की रचना की।

मैकियावेली के मुख्य राजनीतिक विचार

मानव स्वभाव पर विचार - मैकियावेली मनुष्य को आसुरी प्रवृत्ति से युक्त मानता है । उसके अनुसार मनुष्य प्राकृतिक रूप से घोर स्वार्थी और दुष्ट है ।उस के कार्यों की प्रेरणा उसके स्वार्थ की भावना है । उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ' प्रिंस ' के 17 वें अध्याय में मनुष्य स्वभाव का चित्रण करते हुए लिखा है " सामान्य रूप से मनुष्यों के बारे में यह कहा जा सकता है कि वे कृतध्न, ढुल- मुल, झूठे, कायर और लोभी होतें हैं।" मैकियावेली ने मनुष्य को साधारण रूप से निर्बल, अज्ञानी और दुष्ट स्वभाव का बताया है उसने कहा कि मनुष्य आवश्यकतावश ही भला बनने का ढोंग करता है। मनुष्य का सम्पत्ति के प्रति लगाव की सघनता की ओर संकेत करते हुए वह कहता है कि वह अपने पिता की मृत्यु को तो शीघ्र भूल जाता है किंतु पितृ- धन की हानि को नहीं भूलता । इसलिए वह राजा को परामर्श देता है कि राजा अपने नागरिकों को अन्य सभी प्रकार के दंड दे लेकिन उनकी सम्पत्ति का कभी अपहरण न करो
धर्म और नैतिकता पर विचार- मैकियावेली ने कहा सच्चा शासक वही है जो शेर की तरह शक्तिशाली और लोमड़ी की तरह चालाक हो, उसे पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म, लोक - परलोक, अच्छा - बुरा, शत्रु - मित्र आदि दृष्टिकोणो का दास नहीं होना चाहिए क्योंकि उसके लिए ये वस्तुएँ महत्वपूर्ण नहीं है, महत्वपूर्ण है राज्य की सुरक्षा और सुदृढ़ता । मैकियावेली के अनुसार साध्य की प्राप्ति के लिए साधनों की नैतिकता के चक्कर में पड़ना मुर्खता है। मैकियावेली संपूर्ण मानव संगठनों  में राज्य को श्रेष्टतम मानता है, जिसका उद्देश्य मानव रक्षा और कल्याण है। मैकियावेली राज्य को धर्म के विरुद्ध आचरण करने का अधिकार भी प्रदान करता है किंतु राज्य को आवश्यकतानुसार धर्म - विरुद्ध कार्यों का प्रबल समर्थक होते हुए भी वह राजनीतिक दृष्टि से धर्म को बड़ा उपयोगी मानता है क्योंकि धर्म के भय से लोग राजाज्ञा का पालन करते है । मैकियावेली ईसाई धर्म का भी विरोधी था तथा वह पोप का भी विरोधी था। उसका कहना था कि जो पोप से जितना निकट है वह धर्म से उतना हो दूर है। मैकियावेली की मान्यता थी कि पोप के संकीर्ण स्वार्थ ही इटली की एकता में बाधक है ।

राज्य संबंधी विचार- मैकियावेली का मानना है कि मनुष्य ने अपनी असुविधाओं को दूर करने के लिए राज्य की स्थापना की अतः वह मानवीकृत व कृत्रिम संस्था है । मैकियावेली ने राज्य को अन्य संगठनों से उच्च तथा श्रेष्ट माना है । समाज के सभी संगठन राज्य के अधीन और उसके प्रति उत्तरदायी है, किंतु राज्य  किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है । राज्य ही एकमात्र ऐसा साधन है जिसके माध्यम से मानव कल्याण के सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्त किए जा सकतें है । मैकियावेली राज्य को परिवर्तनशील मानता है, जिसका उत्थान तथा पतन होता रहता है । इस दृष्टि से राज्य के दो प्रकार बताता है

*स्वस्थ राज्य- निरन्तर गतिशील और एकताबद्ध ।
* अस्वस्थ राज्य- गतिहीन तथा अवरुद्ध विकास वाला राज्य। 

शासन संबंधी विचार- मैकियावेली शासन पद्धतियों के वर्गीकरण में अरस्तू का अनुसरण करता है, उसके अनुसार सरकार के तीन शुद्ध और तीन अशुद्ध रूप होते हैं ।

शुद्ध रूपों के अन्तर्गत- राजतंत्र, कुलीनतंत्र तथा गणतंत्र ।

अशुद्ध रूपों के अन्तर्गत- अधिनायकतंत्र, वर्गतंत्र, भीड़तंत्र अथवा लोकतंत्र । 

पोलिबियस तथा सिसरो की तरह मैकियावेली भी मिश्रित शासन व्यवस्था को श्रेष्ट मानता है क्योंकि उसमें प्रत्येक शासन व्यवस्था के अच्छे गुणों का समावेश होता है । मैकियावेली ने अपनी पुस्तक प्रिंस में राजतंत्र का वर्णन किया तथा गणतंत्र का वर्णन डिस्कोर्सेज पुस्तक में किया । 
मैकियावेली के अनुसार जिस समाज में आर्थिक समानता उपलब्ध होती है तथा जहाँ की जनता सामाजिक भावना से पूर्ण संगठित व धर्म-परायण होती है वहां गणतंत्र प्रणाली सर्वोत्तम सफल सिद्ध होती है । उसके अनुसार गणतंत्र ही एकमात्र शासन व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत संगठित होकर के संपूर्ण जनता शासन संचालन में भाग ले सकती है। मैकियावेली वंशानुगत राजतंत्र की तुलना में निर्वाचित राजतंत्र को अधिक अच्छा मानता है। मैकियावेली कुलीनतंत्र का विरोधी था क्योंकि इसमें शासक वर्ग हमेशा जनसाधारण के हितो की उपेक्षा करता है । वह कहता है कि जहाँ संभव हो वहाँ गणतंत्रात्मक व्यवस्था स्थापित की जानी चाहिए ,
जहाँ आवश्यक हो वहाँ राजतंत्रात्मक व्यवस्था परन्तु कुलीनतंत्रात्मक व्यवस्था कहीं नहीं । 

कानून संबंधी विचार- मैकियावेली के अनुसार एकाकी शासक के द्वारा जिन कानूनों तथा शासन व्यवस्था की स्थापना जात है वे जनता के राष्ट्रीय चरित्र का निर्धारण करते हैं । मैकियावेली कानून निर्माता को महत्वपूर्ण व सर्वशक्तिमान बताता है। कानून निर्माता ही अपने विवेक से कानूनों का निर्माण करके नागरिकों में सदगुणों का विकास करता है । वह राज्य का निर्माता ही नहीं बल्कि समाज का भी निर्माता है । मैकियावेली की कानून संबंधी मान्यता प्राचीन एवं मध्ययुगीन मान्यताओं से पूर्णतः भिन्न हैं। कानून मैकियावेली के लिए न तो ईश्वरीय विवेक है और न ही सार्वभौम मानवीय विवेक का प्रतीक है। वह न दैवी कानून में विश्वास रखता है ,न ही प्राकृतिक कानून में। वह रीति रिवाजों को भी कानून का स्रोत नहीं मानता । उसकी दृष्टि में कानून सिर्फ शासन का आदेश है। उसकी सफलता का आधार राज्य की सफलता है । मैकियावेली कानून के शासन का सर्मथक था वह चाहता था कि सरकारी अधिकारियों के कार्य भी कानून द्वारा नियन्त्रित हों।

मैकियावेली ने राजनीतिक दर्शन को मध्ययुगीन धार्मिक नैतिकता- आधारित आडम्बरवाद से मुक्त कर उसके आधुनिक वैज्ञानिक स्वरूप का मार्ग प्रशस्त किया । मैकियावेली सही अर्थों में आधुनिक राजनीतिक चिंतन का अग्रदूत था ।


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