फ्रांस का संविधान

फ्रांस को शासन प्रणालियो की प्रयोगशाला कहा जाता है । यहां सदैव राजनीतिक प्रयोग संविधानों की दृष्टि से होते रहें हैं। संसदीय शासन प्रणाली और प्रजातंत्र के आदर्श स्वतंत्रता, समानता एवं बन्धुत्व फ्रांस की राज्य क्रान्ति की ही देन माना जाता  है। इसकी आंतरिक राजनीति का प्रभाव युरोपीय राजनीति पर भी पड़ता है। इसलिये कहा जाता है कि "जब फ्रांस को सर्दी लगती है तो यूरोप को छींक आ जाती है।"

फ्रांस विश्व राजनीति में आज भी एक प्रभावशाली शक्ति है और इसकी गणना विश्व की पाँच महान शक्तियों में की जाती है । 29 सितम्बर 1958 को लागू संविधान को ही वर्तमान संविधान माना जाता है |




फ्रांस के संविधान (पंचम गणतंत्र ) की विशेषताएं:


  • पंचम गणतंत्र की स्थापना के समय 15 वें संविधान का जन्म हुआ जिसका उद्देश्य राष्ट्र में' स्थायित्व' तथा 'व्यवस्था' की स्थिति को कायम करना था।
  • निर्मित और लिखित अस्पष्ट संविधान- यहाँ का संविधान 40 पृष्टों का आलेख है जिसमें प्रस्तावना के अतिरिक्त 15 शीर्षक और 94 धाराएँ सरल भाषा में लिखा गया एवं 2 घण्टे में इसे पढा जा सकता है । ब्रोगन के अनुसार " संविधान का आलेख सुन्दर और पूर्णतः तर्कसंगत नहीं है ।" अन्य विचारकों ने फ्रांस के संविधान के लिए अप्रिय शब्दावली जैसे संसदीय साम्राज्य, अर्द्ध अध्यक्षात्मक, फ्रांस के संवैधानिक इतिहास में सबसे बुरा प्रारूप एवं अस्थाई शब्द का प्रयोग किया गया है । सभी संविधान में संशोधनों की गुंजाइश होती है परन्तु फ्रांस के संविधान के लिए यह कार्य दुष्कर है । फ्रांस के संविधान में अनेक महत्वपूर्ण संस्थाओं के संबंध में किसी प्रकार का प्रावधान नहीं दिया गया है जैसे समुदाय की संस्थाओं, संसद के दोनों सदनों की रचना और कार्य प्रणाली के नियम, चुनाव संबंधी कानून, न्यायपालिका के संगठन आदि अनेक मामलों के विषय में संविधान में कोई आवश्यक प्रावधान नहीं मिलता है । फ्रांस का संविधान अनेक स्थानों पर बड़ा अस्पष्ट है।
  • प्रस्तावना- पंचम गणतंत्र के संविधान की प्रस्तावना में कुछ बाते चौथे गणतंत्र की बातों को समाविष्ट किया गया ।अधिकारों अथवा सार्वभौमिकता संबंधी सिद्धान्तों की चर्चा न करके यह कहा गया "फ्रांस की जनता सन् 1789 की घोषणा और प्रतिभाषी मानव - अधिकार और राष्ट्रीय सार्वभौमिकता के सिद्धान्तों को जिन्हें सन् 1946 के संविधान द्वारा अपनाया और बढ़ाया गया, स्वीकार करती है ।" इसकी तुलना हम भारतीय संविधान के राज्य के नीति निर्देशक तत्वों से कर सकते हैं।
  • जन सम्प्रभुता- फ्रांस के संविधान की 2, 3 और 4 धारा संप्रभुता से संबन्धित है। धारा 2 के अनुसार फ्रांस अविभाज्य, धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक और सामाजिक गणतंत्र है । धारा 3 के अनुसार राष्ट्रीय प्रभुता जनता में निहित है और उसका प्रयोग जनता अपने प्रतिनिधियों तथा लोकनिर्णय द्वारा करेगी । धारा 4 के अनुसार राजनीतिक दल समूह और मताधिकार की अभिव्यक्ति में साधक होंगे, उन्हें स्वतंत्रता पूर्वक अपना निर्माण व कार्य करने की छूट होगी किंतु उन्हें राष्ट्रीय प्रभुसत्ता व प्रजातंत्र के सिद्धान्तों का पालन करते हुए कार्य करना पड़ेगा ।
  • संसदात्मक और अध्यक्षात्मक व्यवस्था का समन्वय- जो संसदीय प्रणाली फ्रांस में अपनायी गयी वह अर्द्ध संसदीय है क्योंकि मंत्रिमंडल संसद के सम्मुख पूर्णतः उत्तरदायी नहीं है । फ्रांस का राष्ट्रपति अनेक विषयों में अमेरिका के राष्ट्रपति के समान है क्योंकि राष्ट्रपति को साधारण शक्तियों के साथ- साथ अनेक असाधारण शक्तियां प्राप्त हैं। यदि संसद मन्त्रिमंडल के प्रति अविश्वास का प्रस्ताव पास करता है तब भी मन्त्रिमंडल चल सकता है क्योंकि उसका उत्तरदायित्व राष्ट्रपति के प्रति है संसद के प्रति नहीं । फ्रांसीसी राष्ट्रपति पर अभियोग भी नहीं चलाया जा सकता ।
  • ब्रोगन "यह न तो अमेरिकन ढंग का अध्यक्षात्मक संविधान है और न अंग्रेजी ढंग का संसदात्मक संविधान है और न अंग्रेजी ढंग का संसदात्मक संविधान ही, यह तो दोनों का मेल है। "
  • एकात्मक और केंद्रीकृत शासन प्रणाली- संपूर्ण देश का शासन एक ही केंद्र से संचालित होता है स्थानीय प्रशासन के केंद्र सरकार का नियन्त्रण रहता है
  • दुष्परिवर्तनशीलता- अनुच्छेद 89 में संशोधन प्रक्रिया का वर्णन किया गया है जो साधारण विधायी प्रक्रिया से भिन्न है। संविधान में संशोधन के लिए पहल करने की शक्ति प्रधानमंत्री के प्रस्ताव पर गणतंत्र के राष्ट्रपति और पार्लियामेंट के सदस्यों के हाथों में है। सरकारी अथवा संसद का संशोधन संबंधी विधेयक एसेम्बलियों द्वारा एक ही रूप में पास होना आवश्यक है । संशोधन लोकनिर्णयों द्वारा स्वीकृति मिलने पर पक्का हो जाएगा, परन्तु प्रस्तावित संशोधन लोक निर्णय के लिए तब तक प्रस्तुत नहीं किया जाएगा जब तक कि गणतंत्र का राष्ट्रपति उसे कांग्रेस में आहुत पार्लियामेंट के सामने पेश करने का निर्णय करे। ऐसी दशा में प्रस्तावित संशोधन कुल डाले गए मतों के 3/4 के बहुमत के पक्ष में होने पर ही स्वीकृत होगा । जब देश की भौगोलिक एकता को खतरा हो तो कोई संशोधन संबंधी प्रक्रिया नहीं होती है तथा शासन के गण तंत्रीय रुप में कोई संशोधन नहीं किया जाता है। नागरिकों के मौलिक अधिकार और कर्तव्य-नागरिको को मौलिक अधिकार तो दिए गए हैं परन्तु फ्रांस में नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने की कोई सवैंधानिक व्यवस्था नहीं की गई है ।


समझौते, सन्धियों तथा अन्तर्राष्ट्रीय कानून संबंधी प्रावधान- संविधान की धारा 88 में बताया गया कि " गणतंत्र / समुदाय/ समाज उन राज्यों से समझौते कर सकता है तो अपनी सभ्यताओं को विकसित करने के लिए समझौते कर सकता है जो अपनी सभ्यताओं को विकसित करने के लिए समुदाय अथवा समाज से मिलकर संघ बनाना चाहे । "
संविधान की प्रस्तावना में अन्तर्राष्ट्रीय कानून संबंधी सिद्वान्त पर प्रकाश डाला गया जिसमें कहा गया " फ्रेंच गणतंत्र अपनी परम्परा के प्रति निष्ठा रखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय कानून के नियमों का पालन करेगा । वह कभी विजय के लिए युद्ध नहीं करेगा और किसी भी राष्ट्र की स्वतंत्रता के विरुद्ध कभी भी शस्त्रों का प्रयोग नहीं करेगा।"
गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था- भारत तथा संयुक्त राज्य अमेरिका की भाँति, फ्रांस एक लोकतांत्रिक गणतंत्र है । प्रधानमंत्री के नेतृत्व में निर्मित मंत्रिमंडल संसद के निचले सदन, प्रतिनिधि सदन के प्रति उत्तरदायी है । प्रतिनिधि सदन व्यस्क मतदान के आधार पर जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है । संविधान के अनुच्छेद -2 में फ्रांस को एक अविभाज्य, धर्मनिरपेक्ष, प्रजातंत्रात्मक और सामाजिक गणतंत्र के रूप में घोषित किया गया । राज्य का अध्यक्ष अर्थात राष्ट्रपति जनता द्वारा निर्वाचित होता है । उसका कार्यकाल निश्चित होता है । संविधान की अवहेलना करने के आरोप में उसे अपदस्थ किया जा सकता है । इस आधार पर फ्रांस एक गणतंत्र है । निर्वाचित राष्ट्रपति तथा उत्तरदायी मंत्रिमंडल, भारत की तरह, फ्रांस की राजनीतिक व्यवस्था का आधार है ।

शक्तियों का वास्तविक पृथककरण नहीं है:- फ्रांस के संविधान में शाक्तियों के पृथक्करण और उसके अभाव का अद्भुत मिश्रण है। प्रथम दृष्टि में ऐसा प्रतीत होता है कि फ्रांस में शक्ति पृथ्थकरण का प्रयास किया गया है । राष्ट्रपति देश का मुख्य कार्यपालिका अधिकारी है। वह जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है । वह संसद के प्रति उत्तरदायी नहीं होता है। प्रधानमंत्री तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

राजनीतिक दलों को संविधान द्वारा मान्यता:- उदार लोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक दल प्रमुख भूमिका निभातें है। भारत, अमेरिका तथा ब्रिटेन की भाँति फ्रांस में भी लोकतंत्र का कार्यान्वयन बहुत कुछ राजनीतिक दलों के द्वारा होता है । लोकतांत्रिक देशों के संविधानों में प्रायः राजनीतिक दलों का उल्लेख नहीं होता है, यद्यपि वे ही सरकार को गति प्रदान करते हैं । राजनीतिक दल समाज और राजनीति की देन होते हैं, संविधान की नहीं । परन्तु, फ्रांस के पंचम गणतंत्र के संविधान में राजनीतिक दलों को औपचारिक रूप से मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान में लिखा है कि राजनीतिक दल स्वतंत्रतापूर्वक स्थापित किए जा सकते हैं और वे स्वतंत्र रूप से कार्य करते हैं ।
संविधान के अनुच्छेद 4 के अनुसार" राजनीतिक दल तथा समूह जनता के मतों को व्यक्त करने का साधन होगें ।वे स्वतंत्रतापूर्वक गठित किए जाएंगे तथा वे अपना कार्य स्वतंत्र रूप से करेगें । उन्हें राष्ट्रीय सम्प्रभुता तथा लोकतंत्र के सिद्धान्तों को स्वीकार करना होगा। " दलों की आवश्यकता स्वीकार करते हुए संविधान- निर्माताओं ने पह आशा व्यक्त की थी कि वे( राजनीतिक दल) राष्ट्र की प्रभुसत्ता और लोकतंत्र को सुरक्षित रखेगें । अतः यदि कोई राजनीतिक दल लोकतंत्र या सम्प्रभुता के विरुद्ध कोई कार्य करता है तो उस पर निश्चय ही रोक लगाई जा सकती है ।

सन 1958 में, संकट की परिस्थिति में निर्मित फ्रांस का संविधान चार दशक तक सफलतापूर्वक कार्य करता रहा है। यह संविधान निर्माताओं की परिपक्वता का प्रमाण तो है ही, साथ ही फ्रांस की जनता और उस देश के राजनेताओं के संयम और बुद्धिमता का प्रतीक भी है।

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