संघीय ढांचा (केंद्र राज्य संबंध)

26 जनवरी 1950 को जब भारतीय संविधान लागू हुआ तो राष्ट्र के लिए न्याय ,समता , स्वतंत्रता और बंधुत्व के आदर्शों की प्राप्ति सर्वोच्च मानी गई। संविधान में समता पर दिया गया सारा जोर संघीय भावना और विचारों के इर्द गिर्द निर्मित सभी व्यवस्थाओं में दिखाई देता है । विभिन्न राज्यों की जनसंख्या की आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए संविधान के निर्माताओं ने सरकारों के विभिन्न स्तरों पर शक्तियों और उत्तरदायित्वों के न्यायसंगत हिस्सेदारी का प्रावधान किया गया । भारतीय संघवाद की प्रकृति को के० सी ० व्हियर ने अर्द्ध संघीय (quasi fedral) बताया है। राज्यों एवम् केंद्र से संबंधित विधायी शक्तियां भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245 से 254 tk वर्णित हैं।
शासन व्यवस्था दो प्रकार की हो सकती है:
  • संघात्मक 
  • एकात्मक
संघात्मक एक ऐसी शासन व्यवस्था जहाँ केंद्र के साथ राज्य सरकारों का अस्तित्व हो तथा केंद्र और राज्यों के बीच कार्यों का बटवारा होता हो। इस प्रकार की व्यवस्था को संघात्मक शासन व्यवस्था कहा जाता है। इसका उदाहरण संयुक्त राज्य अमेरिका है।

एकात्मक एक ऐसी शासन व्यवस्था जहाँ राज्य सरकारों का कोई अस्तित्व नहीं होता है। इसका उदाहरण इंग्लैंड है। भारत में संघात्मक शासन व्यवस्था है हालांकि संविधान के किसी भी अनुच्छेद में इस प्रकार की शब्दावली उल्लेखित नहीं है। एस०आर० बोम्बई /भारत संघ (1994) के मामले में यह निर्णय दिया गया कि संघात्मक शासन व्यवस्था संविधान की आधारभूत संरचना है।

संविधान में संघात्मक शासन व्यवस्था से संबंधित लक्षण:
  • विषयों का विभाजन अनु०246 के तहत केंद्र और राज्यों के मध्य विषयों का विभाजन करते हुए तीन सूचियां बनाई गई हैं।
  • संघ सूची (union list) मूल संविधान में इस सूची के अंतर्गत 96 विषय थे । वर्तमान में 100 विषय है। इस सूची के विषयों पर केवल संसद को कानून बनाने का अधिकार है।
  • राज्य सूची(state list) मूल संविधान में इसके अंतर्गत 66 विषय थे वर्तमान में 62 विषय है। इस सूची के विषय पर सामान्यता राज्य विधानमंडल कानून बनाता है।
  • समवर्ती सूची (concurrent list) मूल संविधान में 47 विषय थे। वर्तमान में 52 विषय है इस सूची के विषय पर संसद और राज्य विधानमंडल दोनों मिलकर कानून बनाते हैं।
  • राज्यसभा का दूसरे सदन के रूप में होना राज्यसभा के 233 सदस्यों का चुनाव अनुच्छेद 80 के तहत राज्यों की विधानसभाओं के सदस्यों के द्वारा किया जाता है । राज्य सभा राज्य के हितों का प्रतिनिधित्व करती है।
  • अखिल भारतीय सेवाओं का होना सरदार वल्लभ भाई पटेल को अखिल भारतीय सेवाओं का जनक कहा जाता है।संविधान सभा में सरदार पटेल ने अखिल भारतीय सेवाओं का समर्थन किया था। वर्तमान में तीन अखिल भारतीय सेवाएं हैं आईएएस, आईपीएस, आईएफएस । अखिल भारतीय सेवाओं में 1905 में लॉर्ड कर्जन ने पदावधि (tenure system) की स्थापना की थी। इस व्यवस्था के अंतर्गत अखिल भारतीय सेवा का अधिकारी अपने केडर तथा संघ सरकार दोनों के लिए कार्य करता है।
  • संविधान की सर्वोच्चता अनुच्छेद 368 के तहत संसद को संविधान का अधिकार है परंतु संसद संविधान की आधारभूत संरचना में संशोधन नहीं कर सकती है।
  • स्वतंत्र न्यायपालिका न्यायधीशों की नियुक्ति में सरकार की कोई भूमिका नहीं है। पद पर रहते हुए उनके वेतन में हानिकारक परिवर्तन नहीं किया जा सकता। उन्हें हटाने के लिए संसद का विशेष बहुमत आवश्यक होता है। सेवानिवृत्ति के बाद भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद नहीं दिया जाता है। संविधान की व्याख्या करना  न्यायपालिका का कार्य हैं।
  • अन्तर्राज्यीय परिषद  अनुच्छेद 263 में इसका उल्लेख है यह परिषद केंद्र और राज्यों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों पर विचार विमर्श करने तथा इस संदर्भ में सुझाव देने का कार्य करती है।1990 में इस परिषद की स्थापना हुई। प्रधानमंत्री इस परिषद का पदेन अध्यक्ष होता है जबकि प्रधानमंत्री द्वारा मनोनीत केंद्र सरकार के 6 कैबिनेट मंत्री तथा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री इसके सदस्य होते हैं।
  • राज्य पुनर्गठन अधिनियम 1956 के तहत पांच क्षेत्रीय परिषदें बनाई गई हैं । उत्तरीपूर्वी राज्य क्षेत्रीय परिषद अधिनियम 1971 के तहत उत्तरी पूर्वी राज्यों के लिए अलग परिषद की स्थापना की गई है। इसमें 8 राज्य सदस्य हैं। 1994 से सिक्किम भी इसका सदस्य है । भारत के गृहमंत्री सभी क्षेत्रीय परिषदों की अध्यक्षता करतें हैं।
  • भारतीय संविधान में एकात्मक प्रावधान विषयों का झुकाव केंद्र की ओर संघ सूची के विषयों की संख्या अलग है तथा सभी महत्वपूर्ण विषय संघ सूची में हैं।अनुच्छेद 248 में अवशिष्ट विषय (Residury Powers) का उल्लेख है । इन पर संसद के द्वारा कानून बनाया जाता है ये वे विषय हैं जिनका उल्लेख तीनों सूचियों में नहीं है।अनुच्छेद 249 के तहत राज्य सूची का कोई विषय वर्तमान समय में राष्ट्रीय महत्व का बन गया है तो राज्य सभा उपस्थित व मतदान करने वालों के 2/3 बहुमत से प्रस्ताव रखती है। राज्य सूची के विषय पर राज्यसभा के प्रस्ताव पर संसद द्वारा जो कानून बनाया जाता है ऐसे कानून की अवधि 1 वर्ष होती है क्योंकि वर्तमान परिस्थिति में वह राष्ट्रीय महत्व का विषय है अनुच्छेद 250 में उल्लेखित है कि अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल लग जाने पर राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त हो जाता है। अनुच्छेद 251 में उल्लेखित है कि अनुच्छेद 249 तथा अनुच्छेद 250 के तहत बनाए गए किसी कानून का टकराव यदि राज्य कानून से होता है तो संसदीय कानून माना जायेगा।अनुच्छेद 252 में यह उल्लेखित है कि दो या दो से अधिक राज्यों के निवेदन करने पर संसद राज्य सूची के विषय पर भी कानून बना सकती है । अनुच्छेद 253 में यह उल्लेखित है कि संघ सरकार द्वारा किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि /समझौते पर हस्ताक्षर कर लेने पर राज्य सूची से जुड़े हुए विषय पर भी कानून बनाने का अधिकार संसद को प्राप्त हो जाता है। अनुच्छेद 254 में यह उल्लेखित है कि समवर्ती सूची के किसी विषय पर संसद व राज्य विधानमंडल में टकराव होने पर संसदीय कानून माना जाता है।
  • केंद्र द्वारा निर्देश देना अनुच्छेद 257 के तहत संघ सरकार अपने संचार के साधनों तथा रेल पटरियों की सुरक्षा के संदर्भ में राज्य सरकारों को निर्देश दे सकती है । अनुच्छेद 365 के तहत संघ सरकार राज्य सरकारों को निर्देश दे सकती है। निर्देशों की पालना नहीं करने को संवैधानिक तंत्र की विफलता माना जाता है।
  • राज्यसभा में असमान प्रतिनिधित्व राज्यसभा में जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व है जैसे उत्तर प्रदेश से 31 प्रतिनिधि और गोवा से मात्र 1 प्रतिनिधि ही चुनकर जाता है । 12 सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किया जाता है। लोकसभा की तुलना में राज्यसभा शक्तिहीन है।
  • अखिल भारतीय सेवाओं का होना अनुच्छेद 309 के तहत अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की सेवा शर्तों का निर्धारण संसद द्वारा किया जाता है। अनुच्छेद 310 के तहत अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त होते हैं तथा राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद पर रहते हैं । अनुच्छेद 311 में उल्लेखित है कि अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों को नियुक्त करने वाले अधीनस्थ द्वारा हटाया नहीं जा सकता । अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों पर राज्य सरकार का आंशिक नियंत्रण होता है। राज्य सरकारें उनका स्थानांतरण कर सकती हैं ,उन्हें पद स्थापन्न की प्रतीक्षा में रख सकती है । केंद्र सरकार की अनुमति से निलम्बित कर सकती है परंतु उन्हें बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है।
  • वित्तीय निर्भरता अनुच्छेद 275 के तहत संसद कानून बनाकर राज्य को अनुदान देती है । अनुच्छेद 280 में वित्त आयोग का उल्लेख है । इसमें एक अध्यक्ष और और 4 सदस्य होते हैं। इन सबकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है यह आयोग केंद्र और राज्यों के बीच करों के बटवारें के संदर्भ में सिद्धांत बनाता है । अनुच्छेद 282 के तहत संघ सरकार राज्य सरकारों को अनुदान दे सकती है। अनुच्छेद 293 के तहत राज्य सरकारें संघ सरकार की गारंटी पर ही उधार ले सकती हैं।अनुच्छेद 304 के तहत किसी अन्य राज्य के साथ व्यापार पर रोक लगाने संबंधी विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति से विधानमंडल में रखा जा सकता है।
  • एकल नागरिकता भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है।किसी भी नागरिक ने किसी भी भारतीय क्षेत्र की नागरिकता प्राप्त कर रखी है तो वह भारत का ही नागरिक कहलाता है।
  • एकल न्यायपालिका न्यायपालिका संघ सूची का विषय है।राज्य के उच्च न्यायालय के संबंध में भी राष्ट्रपति ही नियुक्ति करता है राज्यपाल से केवल सलाह लेता है और न्यायधीशों को संसद द्वारा हटाया जाता है।
  • केंद्र राज्य संबंधों को मधुर बनाने के लिए प्रयास  
    प्रशासनिक सुधार आयोग 1966 इसके द्वारा अन्तर्राज्यीय परिषद की स्थापना की सिफारिश की थी।
  • राजमन्नार आयोग 1969 तमिलनाडू राज्य द्वारा पी वी राजमन्नार की अध्यक्षता में इसका गठन किया गया था। इसने अखिल भारतीय सेवाओं तथा अनुच्छेद 356 की समाप्ति का सुझाव दिया था।
  • सहाय समिति तत्कालीन राष्ट्रपति वी वी गिरि 1971 में जम्मू कश्मीर के राज्यपाल भगवान सहाय की अध्यक्षता में इसका गठन किया गया। सहाय समिति ने राज्यपाल पद को सुदृढ़ करने की अनुशंसा की।
  • आनंदपुर साहिब प्रस्ताव 1973 इसमें राज्यों की स्वायत्तता देने तथा केंद्र सरकार को विदेशी मामलों ,रक्षा तथा मुद्रा तक सीमित रखने की मांग की गई ।
  • पश्चिम बंगाल ज्ञापन पत्र (memorandom) में सिफारिश की गई कि अनुच्छेद 1 में संशोधन कर Union (यूनियन) शब्द के स्थान पर Fedration (फेडरेशन) शब्द उल्लेखित किया जाना चाहिए । अनुच्छेद 3 में संशोधन कर राज्यों के साथ विचार विमर्श को अनिवार्य किया जाना चाहिए।
  • सरकारिया आयोग 1983 केंद्र राज्य संबंध का सबसे बड़ा आयोग रहा जिसके अध्यक्ष आर एस सरकारिया थे तथा सदस्य बी शिवरामन , एस आर सेन थे। इस आयोग ने सिफारिश की कि नई अखिल भारतीय सेवाएं गठित की जानी चाहिए ,अनुच्छेद 356 का प्रयोग अंतिम विकल्प के रूप में होना चाहिए।



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