लोकपाल (Lokpal) केंद्र स्तर पर तथा लोकायुक्त (Lokayukt) राज्य स्तर पर

विश्व का पहला औम्बुडसमैन(ombudsman)1809 में स्वीडन में स्थापित हुआ था । लोकपाल औम्बुडसमैन का ही भारतीय संस्करण है। औम्बुडसमैन स्वीडिश भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ 'जन शिकायतों को सुनने वाला' होता है । 1963 में लक्ष्मी मल सिंघवी ने लोकपाल शब्द दिया था। 1966 में मोरारजी देसाई की अध्यक्षता में प्रशासनिक सुधार  आयोग  (Administrative Reforms Commission) की स्थापना हुई थी । मोरारजी के मंत्री बन जाने पर के ० हनुमतैया इस आयोग के अध्यक्ष बने। आयोग ने अपना अंतरिम प्रतिवेदन 1968 में दिया।
आयोग की सिफारिश पर मई 1968 में इंदिरा गांधी की सरकार द्वारा लोकपाल की स्थापना हेतु लोकसभा में विधयेक लाया गया। अब तक 10 बार यह विधेयक लाया जा चुका है।दिसंबर 2011 में अंतिम बार विधेयक लाया गया था। इस बार पारित हो गया । लोकपाल व लोकायुक्त विधेयक 2013 को 1 जनवरी 2014 को राष्ट्रपति ने अपनी स्वीकृति दी ।


लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम 2013 विशेषताएं

लोकपाल एक संस्था है जिसमें एक सभापति (1+8) के अलावा 8 सदस्य होगें । सभापति के पद पर ऐसा व्यक्ति नियुक्त किया जाएगा अथवा जो सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश हो अथवा न्यायाधीश रह चुके हो अथवा सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीश हो अथवा रह चुका हो अथवा समाज का प्रबुद्ध वर्ग का व्यक्ति हो।
कम से कम आधे सदस्य ऐसे व्यक्ति होगें जो न्यायिक पृष्ठभूमि से हो ।
SC, ST, OBC, महिला तथा अल्पसंख्यक वर्ग से एक- एक सदस्य होना चाहिए। 

नियुक्ति 

कॉलेजियम की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा इनकी नियुक्ति की जाती है । प्रधानमंत्री इस कॉलजियम के अध्यक्ष होता है जबकि भारत के मुख्य न्यायाधीश ,लोकसभा अध्यक्ष ,लोकसभा में विपक्ष के नेता तथा राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत एक अन्य व्यक्ति सदस्य होगा।
सभापति का दर्जा भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा सदस्य का दर्जा उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के बराबर होगा।

कार्यकाल ( tenure)

इनका कार्यकाल 5 वर्ष अथवा 70 वर्ष में सेवानिवृत्ति तक है इसमें से जो भी पहले हो। कोई भी व्यक्ति अपने पद पर पुनर्नियुक्त नहीं हो सकता है। कोई भी व्यक्ति सेवानिवृत्ति के बाद भारत सरकार अथवा राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद नहीं प्राप्त कर सकता तथा किसी भी प्रकार का चुनाव नहीं लड़ सकता ।

पदच्युत (removal)

इस संदर्भ में संसद के कम से कम 100 सदस्यों द्वारा राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्ताव रखा जाता है।कदाचार अथवा अक्षमता के आरोप में प्रस्ताव लाया जा सकता है । राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय से इस प्रस्ताव की जांच करवाते हैं आरोप सही पाए जाने पर राष्ट्रपति उन्हें हटाते हैं। जांच के दौरान राष्ट्रपति उन्हें निलंबित कर सकते हैं।

लोकपाल की शक्तियां

सी पी सी 1908 के तहत लोकपाल को न्यायिक शक्तियां प्राप्त हैं सम्मन (summon) जारी करना ,शपथ पत्र पर गवाही लेना, गवाही की ऑडियो वीडियो रिकॉर्डिंग करना ।
इसके अतिरिक्त लोकपाल आरोपित अधिकारी का स्थांतरण का आदेश दे सकता , सी बी आई से जांच करवा सकता है।इस दौरान सी बी आई लोकपाल के प्रति उत्तरदायी होगी ।लोकपाल के स्वयं के न्यायालय होगें जिन्हें तीन माह में मामले का निपटारा करना होगा अधिकतम 12 महीने में।
दोषी अधिकारी से भ्रष्टाचार की राशि वसूल कर सकता है ,दोषी अधिकारी की सम्पत्ति नीलाम कर सकता है।

लोकपाल का क्षेत्राधिकार

प्रधानमंत्री परंतु उनके द्वारा परमाणु ऊर्जा ,आंतरिक सुरक्षा , विदेशी संबंध तथा लोक व्यवस्था ( public order ) के बारे में लिए गए निर्णय इसके दायरे से बाहर होगें । केंद्र सरकार के सभी मंत्री तथा पूर्व मंत्री ,सभी वर्तमान सांसद, पूर्व सांसद, अखिल भारतीय सेवाओं के सभी अधिकारी तथा सेवानिवृत्त अधिकारी ,केंद्रीय सेवाओं के सभी श्रेणियों (A,B,C,D) के सभी अधिकारी तथा पूर्व अधिकारी, संसदीय अधिनियमों से स्थापित सभी संस्थाओं के अधिकारी व कर्मचारी व सेवानिवृत्त अधिकारी , विश्व के अन्य किसी भी भाग में कार्यरत भारत सरकार का अधिकारी व कर्मचारी भी लोकपाल के क्षेत्राधिकार में आते हैं। लोकपाल स्वयं किसी प्रकार की सजा नहीं देता है । 7 वर्ष पुराने मामलों की जांच नहीं करेगा । गलत अथवा मिथ्या शिकायत करने पर 1 लाख रुपए का जुर्माना अथवा 1 वर्ष की सजा लोकपाल स्वयं देगा।
19 मई 2019 को उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायधीश पिनाकी चंद्र घोष को 

लोकायुक्त ( राज्य स्तर पर)
लोकपाल व लोकायुक्त अधिनियम 2013 में यह भी प्रावधान किया गया है कि इस अधिनियम के लागू होने के 1 वर्ष के भीतर सभी राज्य लोकायुक्त की नियुक्ति करेंगें । 1970 में उड़ीसा पहला राज्य बना जहाँ लोकायुक्त के संदर्भ में अधिनियम बनाया गया था जबकि 1971 में महाराष्ट्र पहला राज्य बना जहाँ लोकायुक्त की नियुक्ति हुई।
लोकायुक्त की योग्यता: लोकायुक्त के पद पर ऐसा व्यक्ति नियुक्त किया जाता है जो किसी उच्च न्यायालय में न्यायधीश रह चुका हो।
नियुक्ति:  कॉलजियम की सिफारिश पर राज्यपाल द्वारा नियुक्ति की जाती है। मुख्यमंत्री इस कॉलजियम का अध्यक्ष होता है ।
कार्यकाल: 1973 के अधिनियम में कार्यकाल 5 वर्ष निर्धारित है। इनकी सेवानिवृत्ति की अवधि निर्धारित नहीं है।
हटाना (removal): कदाचार /अक्षमता के आरोप पर राज्यपाल द्वारा इसकी जाँच करवाई जाती है । आरोप सही पाए जाने पर विधानसभा में इस संदर्भ में प्रस्ताव लाया जाता है । विधानसभा अपनी कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थित और मतदान करने वालों के 2/3 बहुमत से प्रस्ताव पारित कर देती है तो लोकायुक्त का पद रिक्त माना जाता है।

लोकायुक्त के क्षेत्राधिकार

  • लोकायुक्त के दायरे में पूर्व मंत्री को छोड़कर सभी मंत्री ,अखिल भारतीय सेवाओं के ऐसे अधिकारी जो राज्य में कार्यरत हैं, राज्य की प्रशासनिक सेवाओं के सभी अधिकारी ,महापौर (मेयर) ,सभापति तथा नगरपालिका अध्यक्ष, जिलाप्रमुख व प्रधान आते हैं।
  • जो पदाधिकारी लोकायुक्त के दायरे में नहीं आते उनमें मुख्यमंत्री,पूर्वमंत्री, विधायक (MLA), सेवानिवृत्ति अधिकारी,उच्च न्यायालय के सभी अधिकारी व कर्मचारी,राज्य निर्वाचन आयुक्त ,राज्य निर्वाचन अधिकारी तथा राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारी व कर्मचारी,विधानसभा के अधिकारी व कर्मचारी,महालेखागार के सभी अधिकारी व कर्मचारी ।
  • CPC (Civil Processor Court) 1908 के तहत लोकायुक्त को सम्मन जारी करने ,शपथपत्र पर गवाही लेने की शक्ति प्राप्त हैं । लोकायुक्त 5 वर्ष पुराने मामले नहीं सुनता है। इसे सजा देने का अधिकार नहीं है परंतु मिथ्या शिकायत करने पर 3 वर्षों की सजा देने का अधिकार है।

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